मै भी – ओवुमनिया की शुरुआत इस हेतु से हुई थी कि महिलाओं की दबी हुई मुश्किलें, उनकी हेल्थ को लेकर हो रही परेशानियों को वे बिना झिझक और बिना कोई जजमेंट के शेर कर सके और अपनी मुश्किलों के लिए सही उपाय जान सके। यह करने के लिए जो तरीका हमें मिला वो था महिलाओं को यह बताना था की “और भी” महिलाए है जिनको आप के जैसी ही परेशानी है| यह “और भी” ने काफी महिलाओं को और युवा लडकियो को हिम्मत दी, आत्मविश्वास दिया कि वह अपनी बातो को खुद से OoWomaniya की वेबसाईट पर शेर करने लगे और उनके बारे में डॉक्टर से भी सवाल पूछने लगे|
#MeToo एक ऐसी ही मूवमेंट है, एक आंदोलन है जहां महिलाओं ने खुद ही कहना शुरू किया कि “मैं भी”| एक के बाद एक काफी महिलाओं ने उनके प्रति हो रहे शोषण, यौन शोषण या फिर जातीयता के आधार पर हो रहे किसी भी प्रकार के उंच नीच या परेशानी के बारे में बोलना शुरू किया और इससे कई और महिलाओं को हिम्मत मिलती गई और “मी टू” दुनियाभर में एक मूवमेंट की तरह उभरा|
इसी मूवमेंट में योगदान देने के लिए ओवुमनिया द्वारा किये गए एक अभ्यास में सौ से अधिक महिलाओं ने अपने साथ हुए शोषण या गलत बर्ताव के बारे में हमें बताया| इन महिलाओं को दिए गए पहचान गुप्त रखने के विकल्प की भी उन्होंने परवाह नहीं की और खुलकर अपने अनुभवों को शेयर किया| इनमें से ज्यादातर महिलाए इस समय २० से ४० साल की उम्र की है और कुल मिलाकर १८ से ५० साल तक की महिलाओं ने अपने अनुभव बताये|
सबसे चौकाने वाली और प्राथमिक जानकारी यह थी कि इन महिलाओं में से 95% महिलाओं के साथ छेड़ खानी एक से ज्यादा बार और 75% महिलाओं के साथ यह दो से ज्यादा बार उनको शोषण, जातीय अभद्रता का शिकार होना पड़ा है| इनमें से तक़रीबन सारी महिलाओं को सबसे पहला ख़राब अनुभव 5 से 17 साल की उम्र में हुआ| यह दर्शाता ही की छोटी उम्र में जब महिलाए अपने घर में, अपने परिवार के आसपास, स्कुल या कोलेज में होती है, जहां उनका बाहरी दुनिया से इनता संपर्क भी नहीं हुआ है, तब वे पहली बार शोषण का शिकार होती है |
शारीरिक तौर पर पुरुषो का महिलाओ से ज्यादा ताकतवर होना, महिलाओं से अग्रिम होने की हजारो वर्षो की संकुचित मानसकिता होना और सामाजिक तौर तरीको की वजह से कायम हो रही अंधश्रद्दा, संस्कृति के नाम पर चल रही प्रतिगामी यानि की समाज को पीछे रखनेवाली या ले जानी वाली परम्पराए – यह सब मुख्य कारण है कि यौन उत्पीडन या जातीय शोषण स्त्रीओ और अन्य लिंग के लोगो के साथ पुरुषो के मुकाबले कई ज्यादा हो रहा है|
किसके द्वारा और कौन से हालात में ऐसी घटनाए घटती है?
इसके जवाब में सबसे ज्यादा तक़रीबन २५% किस्से अपने ही घर में हुए है, जिनमे से ज्यादातर घर के ही कोई सदस्य या तो रिश्तेदार शामिल है| इसके बाद सबसे ज्यादा किस्से अपने अडोस पड़ोस में हुए है या तो फिर स्कुल में हुए है| महिलाए अपने घर में और घर के आसपास ही सबसे ज्यादा असुरक्षित है और “Me Too” मुहीम के तहत जितने भी वाकिये कहे जा रहे है, उनमे भी ज्यादातर पुरुष है और वे कही न कही जाननेवाले है, मित्र है या सहकर्मी है, और इन सब मामलो में दोषी छोटी से लेकर बड़ी उम्र के है, जिसमे ज्यादातर १८ से ४५ की उम्र के है|
ओवुमनिया के सर्वे से महिलाओं ने बताया की दोषी कोई भी वर्ग का हो सकता है, महिला ने कुछ भी पहना हो, दिन का कोई भी समय हो – किसी न किसी तरह उनके साथ हुए शोषण में सबसे ज्यादा तक़रीबन ९०% महिलाओं को अभद्र स्पर्श या जातीय दुर्व्यवहार या बलात्कार तक का सामना करना पडा है|
इन महिलाओं ने किसी न किसी तरह से अपना विरोध जताया है, वहीं काफी महिलाओं ने यह स्वीकार किया है की या तो वह बहोत कम उम्र की थी या उनको उनके साथ हो रहे शोषण के बारे में इनती समझ नहीं थी| हादसे के बाद आधे से ज्यादा महिलाओं ने उसे नज़रअंदाज़ किया और उनके आलावा ज्यादातर महिलाओं ने अपने दोस्त या माता-पिता को इसके बारे में बताया|
आखिर में इन सब घटनाओ के पीछे महिलाए पितृसत्तक मानसिकता और कानून की दुर्बलता को सबसे बड़े कारण मानती है| जो काफी हद तक इन सब जानकारियो से फलित भी हो रहा है| बचपन से ही पुरुष और स्त्री को जातीय समानता और असमानता के बारे में बच्चो को शिक्षा मिले, सेक्स और जातीय संबंध का ज्ञान और कानून के सही समय पर उपयोग करने की शिक्षा दी जाए तो ही इस मानसिकता में बदलाव लाना संभव हो पाएगा|
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