मै २४ साल की थी जब मेरी शादी मेरे सबसे अच्छे दोस्त के साथ हुई जो कॉलेज में मुझसे २ साल सीनियर था। कुछ ६-७ महीने गुज़रे और हमारे बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं बन पाया।
मैंने अपने पति के साथ कई बार चर्चा करने की कोशिश कि और हर बार उसने मुझे कोई न कोई बहाना दिया जैसे कि वह मूड में नहीं है या वह बहुत थक गया है। जब मैं इस मामले को अपनी माँ तक ले गई, उनका जवाब था “धीरज रखो, सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
मैं निराश थी क्योंकि सब कुछ ठीक था सिवाय के मेरी शादी का एक महत्वपूर्ण पहलू जो पूरी तरह गायब था और वह किसी कॉउन्सिलर या सेक्सोलॉजिस्ट से परामर्श करने के लिए भी तैयार नहीं था। आखिरकार, एक दिन, जब मैंने उससे पूछा कि क्या तकलीफ़ है, तो उसने कहा कि उसे मैं आकर्षक नहीं लगती।
मैंने अपने आप से सवाल करना शुरू कर दिया , अगर मै उसे आकर्षक नहीं लगती थी तो उसने मुझसे शादी कि ही क्यों ? क्यों हम दोनों को इस मुश्किल परिस्थितीमें डाल दिया।
मेरा तर्कसंगत दिमाग मुझे बता रहा था कि इस रिश्ते और विवाह को खींचने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन भावनात्मक रूप से यह इतना आसान निर्णय नहीं था और उसने मेरे आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई थी।
मुझे नहीं पता था कि मैं मेरे माता-पिता का सामना कैसे करूँ क्योंकि उनके लिए समाज और उनका सामाजिक मंडल बहुत मायने रखता हैं। इसके अलावा, उससे शादी करने का निर्णय मेरा था जो गलत हो गया। पर आखिरकार, मैंने अपने माता-पिता के साथ स्थिति पर चर्चा कि, उन्होंने मुझे अपने फैसले में समर्थन दिया और पारस्परिक सहमति से हमारा तलाक हुआ।
तलाक के बाद मेरे माता-पिता हमेशा चाहते थे कि मैं उनके साथ रहूं लेकिन मैंने अकेले रहना और अपना काम जारी रखना ज़रूरी समझा। मैं तलाक के बाद अकेली थी क्योंकि मैंने अपने जीवन में सिर्फ़ एक आदमी को ही नहीं खोया है, लेकिन वो लोग जो हम दोनों के मित्र थे उन्हें भी मैंने खो दिया था और फिर मुझे एहसास हुआ कि जब आप तलाकशुदा होते हैं तो आपको केवल जीवन साथी के रूप में ही नहीं बल्कि एक इंसान के रूप में काफी कुछ खोते हैं और समाज की नज़रोमें आलोचना के पात्र बन जाते हैं।
हालांकि, दूसरे नज़रिये से देखा जाए तो, मैं भाग्यशाली थी कि मेरे ऑफ़िस के सहकर्मियों और दोस्तों ने मेरे साथ बहुत वक़्त बिताया, फिल्में देखीं, उन्होंने अपना दोपहर का खाना और रात का खाना साझा किया और हर सुबह ऑफ़िस पहुंचने पर वे मुझे याद दिलाते थे कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ के फिर से सिंगल हु! अब, मुझे अपने लिए समय मिल सकता है और में वो सारी चीजें कर सकती हूँ जो मुझे पसंद है!
मैंने कुछ अतिरिक्त पाठ्यक्रमों को पढ़ने और सिखने का निर्णय लिया और एक अतिरिक्त डिग्री भी हासिल की। सबकुछ मेरे जीवन में बिल्कुल सही था, सिवाय इसके कि मुझे अभी भी ऐसे इंसान की तलाश थी जिससे मैं प्यार कर सकती हूँ और जो मुझसे प्यार करे।
मुझे उन लोगों से अनचाही सहानुभूति मिलती थी जो मुझे अच्छी तरह से नहीं जानते थे, परिवार के सदस्य जो मेरी वापस शादी करवाना चाहते थे, लेकिन इसमें सबसे परेशान करने वाला वाक्य था “सभी पुरुष समान हैं!” क्योंकि मेरे कई दोस्त पुरुष थे और वे वेसे नहीं थे, यह कथन सत्य नहीं था!
मेरे तलाक के दो साल बाद मुझे एक ऐसा व्यक्ति मिला जिसने मुझे अपने तलाक का कारण तक नहीं पूछा, जिसने मुझसे उन कौशलों की उम्मीद नहीं की जो मुझे समाज के ठेकेदारों के अनुसार आदर्श पत्नी बनाते हैं, जिन्होंने मुझे अपनी किताबों के साथ अकेला छोड़ दिया जब मेरा मन लोगो से मिलना, घूमना नहीं चाहता था तब मुझे अकेले छोड़ दिया। उन्होंने कभी मुझे एक “सुपर महिला” (super-woman) नहीं बल्कि एक आराम में रहनेवाली महिला बनना सिखाया।
जब मैंने उससे शादी करने का फैसला किया तब मेरे माता-पिता समेत कई लोग मेरे निर्णय से खुश नहीं थे। मुझे बताया गया, “हम आपके फैसले से खुश नहीं हैं, आप उससे अपने जोखिम पर शादी कर सकते हैं।” यह सुनकर मुझे काफी हँसी आई क्योंकि चाहे एक प्रेम विवाह हो या परिवार वालों की मर्ज़ी से कि हुई शादी हो, यह हमेशा मेरा जोखिम ही रहेगा और यही कारण है कि यह मेरा निर्णय होना चाहिए। मैंने उससे शादी की और एकमात्र चीज जो मैं आज कह सकती हूँ वो यही है कि, “नहीं, सभी पुरुष एक समान नहीं हैं।”
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